बीकानेर

भोली बातें : राजस्‍थानी कहानी

हिंदी अनुवाद

यह जगनजी का गांव है। आप कहेंगे जगनजी कौनसे? तीन-तीन जगनजी हैं इस गांव में। आपका कहना एकदम सही है। इस कहानी के जगजी वे हैं- भोली बातों वाले। गांव वाले उन्हें इसी नाम से पुकारा करते हैं। एकदम सरल मनुष्य हैं जगनजी। रामजी की गाय जैसे। एक गाय भी है उनके पास। परंतु, वह सरल नहीं है। खूंटे से खुलते ही वह सीधे पड़ोसियों के बाड़े कूदती है। पड़ोसी उलाहना देते हैं। ऐसी बात नहीं है कि जगनजी गाय की सेवा-चाकरी में कोई कमी रखते हों। परंतु गाय का स्वभाव ही ऐसा है। पड़ोसी चाहे कितने ही उलाहनें देवें, जगनजी के पास तो एक ही रटा-रटाया जवाब है, ''गऊमाता है, बंधी हुई रखूं तो पाप का भारा बंधता है।``
पिछले वर्ष अकाल था। जगनजी की गाय ने भी दूध देना बंद कर दिया। परंतु उन्होंने हार नहीं मानीं। किसी भांति हाथ-पैर हिलाते हुए परेशानियों के बियावान से बाहर आये। इस वर्ष बरसात खूब हुई। परंतु जगनजी के खेत नहीं था। गाय के लिए हरा किसके खेत से लायें? कुछ देर सोच-विचार करने के बाद वे चोखा चौधरी के घर पहुंचे। चौधरी भला मनुष्य था। उसने जगनजी को अपने खेत से हरे का भारा लाने की छूट दे दी।
कोई बीस-एक दिन बीतें होंगे। जगजी ने चौधरी से मजदूरी मांगी।
''किस बात की मजदूरी?`` चौधरी ने अचरच से पूछा।
''वाह सा! कैसी भोली बातें कर रहे हो? कानों में रुई तो नहीं ले रहे हो? मैं पिछले बीस दिनों से आपके खेत से भारा नहीं ला रहा क्या?``
''वो तो ठीक, परंतु इसमें मजदूरी की बात कहां से आ टपकी?``
''चलो, आप ही बताओ...... मैं घास लाता हूं, इससे आपके खेत में निनाण (खरपतवार खत्म) नहीं हुईं क्या? और यदि निनाण हुई, तो उसकी मजदूरी भी होनी चाहिए या नहीं?``
चोखा चौधरी मुस्कराने लगा, ''कैसी भोली बातें कर रहो हो, परंतु एक बात कान खोलकर सुन लीजिए- कल से मेरे खेत में नहीं जाओगे।``
जगनजी ने मुंह लटका लिया। परंतु करे क्या? गर्दन लटकाए घर की ओर रवाना हो लिया। मार्ग में कालूजी मिल गए। उसने कालूजी को सब बातें बताई। कालूजी ठहरे दर्जी। जगनजी के दु:ख से दुखी होते हुए बोले, ''हमारी दुकान पर आकर काज-तुरपाई सीख लेना। हाथ साफ होने पर चार पैसे भी मिलेंगे।``
अगले ही दिन जगनजी जा पहुंचे कालूजी की दुकान पर। कालूजी ने कतरनी से कातरों के बचरके लगाए तथा डोरा पिरोने हेतु सूई को जगनजी के हाथों में थमाया और काज-तुरपाई का तरीका बतलाया। बस, फिर क्या देर! जगनजी जोर-शोर से काम में जुट गए। उनकी लगन देखने लायक थीं।
अभी महिना भर ही नहीं हुआ था। जगनजी को कालूजी की कही बात याद आई। उन्होंने कहा था, हाथ साफ होने पर चार पैसे भी मिलेंगे। अब तो उसे तुरपाई और काज करने में आनंद भी अधिक आता है। उसका हाथ एकदम साफ हो गया है। वह मोद-मोद में जा पहुंचे कालूजी के पास।
''अब कुछ पैसे तो देओ।`` जगनजी बोले।
''किस नाम के?`` कालूजी ने कहा।
''काज-तुरपाई के, और किस नाम के! महिना भर होने को आया है काम करते हुए।``
जगनजी का इस भांति तकादा करना कालूजी को रास नहीं आया। वे गुस्से भरते हुए बोले, ''ऐसा तो अभी तक आपको काम ही नहीं दिया। फिर पैसा किस नाम का? अभी तक तो हमारे ही डोरे खत्म किए हैं। हमारी ही कातरें खराब की हैं। ऐसी भोली बातें फिर मत करना।``
''इसमें भोली बातें भला कहां से आ गई? मैंने काम तो किया ही है और मुझे आपने ही तो कहा था कि हाथ साफ होने पर चार पैसे भी मिलेंगे। अब चाहे आप देओ या मत देओ, मेरा फर्ज तो आपको याद दिलाना था। आगे आप जानो।``
''तो सुनो, हमारा भी फर्ज आपको याद दिलाना है। कल से आप हमारी दुकान पर आने की परेशानी मत भुगतना।`` कालूजी ने उनको टका-सा जवाब दे दिया।
जगनजी का माथा घूमने लगा। वे क्या करें? हर कोई उसको 'भोली बातें` कहकर टरका देता है। किसी के खेत से हरे के भारे ढोओ और निनाण के पैसे मांगो तो 'भोली बातें` पल्ले पड़ती हैं। किसी की दुकान पर जाकर काज-तुरपाई करो और पैसे मांगों तो फिर वे ही 'भोली बातें!`
इसी बीच गांव में बैंक की शाखा खुली। गांव वालों ने बैंक में खाते खुलवाए। गांव वालों ने जगनजी को भी खाता खुलवाने की बात कही। बैंक वालों ने भी ब्याज का लालच दिया और रुपयों की अच्छी देखभाल की बात बताई। उनके कहने से जगनजी ने बैंक में पांच सौ रुपये जमा करवाए। परंतु घोड़े बेचकर निधड़क सोने वाले जगनजी की उसी दिन से नींद उड़ गई। आधी रात को वे बिदक कर उठे। कोई डरावना सपना देखा था उन्होंने। उनको लगा, जाने चोर-उचक्का बैंक के ताले तोड़ रहा है। वे उठे, लाठी उठाई, बैटरी हाथ में ली, जूते पहनें और चल पड़े बैंक की ओर। बैंक का ताला भलीभांति जांचा-परखा, खुड़खुड़ाया। ताला सावधानी से लगाया हुआ था। इधर-उधर देखा। कोई नहीं दिखा। पूरा विश्वास होने के बाद घर वापिस आए। अब तो उन्होंने नियम ही बना लिया। जब नींद टूटती, वे उठते। लाठी और बैटरी लेकर बैंक जाते। ताला खुड़खुड़ाकर जांच-परख करते और निश्चिंत होने पर ही वापिस घर पहुंचते।
एक रात की बात। जगनजी ने बैंक का ताला खुड़खुड़ाना शुरू किया ही था कि उसी वक्त वहां से पहरेदार का निकलना हुआ। उसने हल्ला किया, ''चोर! चोर!!``
हल्ला सुनकर लोग घरों से बाहर आ गए। जगनजी को बहुत गुस्सा आया। वे बोले, ''चोर किसको कह रहे हो? पूरे पांच सौ रुपये जमा करवाए हुए हैं इस बैंक में! रोज रात को संभालने पड़ते हैं। किसके ऊपर भरोसा करूं? आप लोग तो घरों में सोए हुए पड़े रहते हो। यदि चोरी होती है तो आपका कौनसा नाम बदनाम होता है! रुपये डूबें तो मेरे डूबें और यह पहरेदार का बच्चा कभी नजर तो नहीं आया? चोर-चोर कहते हुए शर्म ही नहीं आती नालायक को?``
जगनजी की बातें सुनकर लोग हंस रहे थे। अब कोई हंसे तो हंसे, जगनजी उनका क्या करता....... खरी-खोटी सुनाते हुए घर का मार्ग लिया।
एक दिन की बात। जगनजी सौ रुपये जमा करवाने हेतु बैंक पहंुचे। रोकड़िये से बोले, ''ये सौ रुपये और जमा कर लो, रखवाली तो हिस्से में आई हुई ही है, पांच सौ के साथ सौ और ही सही।``
रोकड़िये ने उनके सौ रुपये लिए और जमा-रसीद दे दी। उसी समय रावत ने अपने खाते से सौ रुपये निकलवाए। रोकड़िये ने जगनजी वाला सौ रुपये का नोट रावत के हाथ में पकड़ा दिया। जगनजी ने झट रावत का हाथ पकड़ लिया। गुस्सा होते हुए बोले, ''ये भोली बातें और कहीं ही! मैंने रुपये बैंक में जमा करवाने के लिए दिये हैं, किसी को बांटने के लिए नहीं दिए।``
रोकड़िये ने बहुत समझाया। जमा-रसीद की बात बताई। परंतु जगनजी नहीं मानें। वे बोले, ''जमा-रसीद बेचारी क्या करे? मेरी आंखों के सामने ही मेरे रुपये रावत को दे रहे हो। मैं छलावे में नहीं आने वाला। शायद मेरे पहले वाले रुपये भी गुम कर दिए हैं! नहीं तो मेरे छह सौ रुपये अभी के अभी वापिस देओ। मुझे नहीं जमा करवाने अब यहां और रुपये। लाओ मेरे रुपये वापिस करो।``
''परंतु इससे तो आपका खाता उठ जाएगा।`` रोकड़िये ने कहा।
''खाता उठे, चाहे बैठे। मैं उलझन में नहीं पड़ूंगा।`` जगनजी ने कहा और आखिर में अपने रुपये लेकर ही रहे। परंतु रुपये लेने के बाद बैंक वालों की प्रशंसा करते हुए इतना जरूर कहा, ''भाई, आप हो तो सच्चे। मैंने नाहक ही आप पर अविश्वास किया। परंतु कोई बात नहीं, रखवाली तो टली।``
लोग हंस रहे थे। रावत ही कहे बिना न रहा, ''भोली बातें तो कोई आपसे सीखे काका।``
बात-बात में गांव वालों द्वारा उसे 'भोली बातें` कहना अखरने लगा। अब वे अनमने-से रहने लगे। कामकाज में भी उनका मन नहीं लगता। मन करता कि लोगों को भली भांति बता दूं कि मैं कभी भोली बातें नहीं करता। भोली बातें करते हैं वे कोई और ही होते हैं।
इसी बीच एक अनहोनी घटना घटी। गांव की बैंक के ताले टूट गए। जगनजी को इसकी खबर चतरू ने दी। सरपंच के कहने से चतरू पुलिस थाने फोन करने जा रहा था। जगनजी को देखते ही वह बोला, ''काका, गजब हो गया! रात बैंक के ताले टूट गए।``
''हैं घ्घ्!`` जगनजी के मुंह से 'हैं घ्घ्` की लम्बी आवाज निकली। वे चितबगने-से काफी समय तक खड़े रहे। चतरू कब गया, उन्हें ध्यान ही नहीं रहा। अचानक उनके चेहरे पर मुस्कान उभरी, 'हूं...... भोली बातें! अब पता चला। मैं रखवाली करता, तब हंसते थे। अब रोओ अपने कर्मों को। अच्छा हुआ जो मैंने मेरे रुपये निकाल लिए।`
सोचते-सोचते जगनजी को जोश आ गया। वे बैंक की ओर चले। सब लोग वहीं मिलेंगे।
उनका सोचना सही था। बैंक के दरवाजे के सामने खड़े लोग बातें कर रहे थे। रोज शहर से आकर बैंक खोलने वाले बैंक मैनेजर एक ओर खड़े थे। बैंक का जालीदार दरवाजा खुला पड़ा था। दरवाजे की सांकल में टूटा हुआ ताला मरे हुए मेंढ़क की भांति लटक रहा था।
ऐसा नजारा देखकर जगनजी का उत्साह समा नहीं रहा था। पास खड़े टीकू के कंधें पर हाथ रखते हुए बोले, ''अब तो मानता है ना, टीकू?``
''क्या?`` टीकू ने उनके चेहरे की ओर देखते हुए कहा।
''यही कि मैं भोली बातें नहीं करता।`` जगनजी ने छाती फूलाते हुए कहा।
''आपने तो सदा भोली बातें ही कीं। परंतु अब मत करना। वरना पुलिस वाले आप पर वहम कर लेंगे..... अभी थाने की जीप आती ही होगी।`` समझाते हुए टीकू उनको भीड़ से अलग ले गया।
''मैं चोर नहीं हूं, मुझे क्यों पकड़ेगी पुलिस?`` जगनजी को टीकू पर बहुत गुस्सा आया।
''यही तो बात है। आप बहुत भोले हो काका।`` टीकू ने उनको फिर समझाते हुए कहा, ''आप सीधे-सीधे घर जाओ। यहां खड़े मत रहो। वरना आपकी भोली बातें आपको ही फंसा देंगी..... ।``
जगनजी को पहली दफा डर लगा..... कहीं टीकू सच्ची बात तो नहीं कह रहा है? वे धीर-से बोले, ''परंतु बताओ तो सही टीकू, पुलिस मुझे क्यों पकड़ेगी?``
''कहा ना, आप भोले हो.....।`` टीकू खीजता-सा बोला, ''भलाई इसमें है कि चुपचाप घर चले जाओ...... नहीं तो किसी पुलिसवाले को भनक पड़ गई कि आप रात को बैंक के ताले खुड़खुड़ाते थे, तो लेने के देने पड़ जाएगें।``
परंतु जगनजी ने टीकू की एक नहीं मानी। पुलिस आई। पूछताछ हुई। भांति-भांति की बातें सामने आईं। जगनजी द्वारा रोजाना ताले संभालनें की बात भी सामने आई। जगनजी ने रस लेते हुए पुलिसवालों को सारी बातें बताई। पुलिस वाले ध्यान से सुनते रहे, लिखते रहे।
पूछताछ पूरी होने के बाद पुलिस की जीप जाने लगी, तो गांव वालों ने देखा कि जगनजी को पुलिस की जीप में बैठा लिया गया है। उनका मुंह लटका हुआ है और आंखों से आंसू ढलक रहे हैं।
अस्त-व्यस्त हुए जगनजी जान नहीं पाए कि आज उन्होंने कौनसी भोली बात कह दी।

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